
=================卐卐卐=========== वंदेभारतलाइवटीव न्युज नागपुर गुरूवार 14,अगस्त 2025-: जन्माष्टमी का उत्सव भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप मे जन्में श्रीकृष्ण के जन्म दिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी का यह पर्व प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को को मनाया जाता है। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर से अधर्म का विनाश कर धर्म की स्थापना के लिए अवतार लिया था। धार्मिक मान्यतानुसार श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में में माता देवकी की आठवें संतान के रूप में हुआ था। श्रीकृष्ण के अवतरण-जन्म के समय आधी रात का समय था,चारों ओर घनघोर अंधेरा छाया हुआ था। आकाश में कृष्ण पक्ष का का चंद्रमा मंद मंद रोशनी के साथ चमक रहा था। श्रीकृष्ण अवतरण जन्म के समय अष्टमी तिथि और रोहणी नक्षत्र का संयोग था। जिसे कि ज्योतिषय दृष्टिकोण से शुभकर माना जाता है। इस वर्ष 2025 में अष्टमी तिथि दो दिन पड़ रही है। इस बार भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां अवतरण-जन्मोत्सव मनाया जायेगा धार्मिक परंपरा के अनुसार अष्टमी तिथि और रोहणी नक्षत्र का संयोग जन्माष्टमी पर्व के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस बार अष्टमी तिथि दो दिन पड़ रही है, और रोहणी नक्षत्र उससे अगले दिन सुबह से प्रारंभ हो रहा है। इस अष्टमी व्रत की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति है। पंचांग की गणना के अनुसार अष्टमी तिथि 15 अगस्त को रात 11:49मिनट से शुरू होकर 16 अगस्त को रात 09:35 बजे पर समाप्त होगी। अधिकतर पंचांग धर्माचार्य मंदिर 16 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने की सलाह देते हैं। श्रीकृष्ण पूजा का श्रेष्ठ समय समय 16 अगस्त शनिवार की रात 12:04 से लेकर 12:47 मिनट रात तक है जो कि निशीथ काल कहलाता है और यह श्रीकृष्ण के अवतरण-जन्म का वास्तविक समय भी माना जाता है। इस बार रोहणी नक्षत्र 17 अगस्त रविवार की सुबह 04:38 मिनट से शुरू होकर 18 अगस्त सोमवार की सुबह 03:17 मिनट तक रहेगा। वैष्णव परंपरा में रोहणी नक्षत्र को अधिक महत्व दिया जाता है। अतः वैष्णव परंपरा के भक्त 16 अगस्त की रात को पूजा कर व्रत का पारण 17 अगस्त को सूर्योदय के बाद कर सकते हैं। स्मार्त परंपरा में सूर्योदय पर अष्टमी तिथि की उपस्थिति के आधार पर ही निर्णय लिया जाता है। स्मार्त परंपरा वाले भक्त उसी दिन व्रत करके 16 अगस्त की रात को ही पारण कर सकतें हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का यह पर्व पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा भक्ति पूर्वक मनाया जाता है। विशेषकर मथुरा वृन्दावन द्वारका तथा इस्कॉन मंदिरों में इस दिन विशेष आयोजन किये जाते हैं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराया जाता है। नए वस्त्र आभूषण पहनाए जाते हैं। विभिन्न प्रकार के मेवा मिषठानों छप्पन भोग श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन रात बारह बजे जन्मोत्सव की धूम रहती है। श्रद्धालु भक्तगण भजन कीर्तन कथा सुनते हैं। झांकी दर्शन व्रत के साथ जन्माष्टमी की पावन रात्रि को श्रीकृष्ण की भक्ति में पूरी रात व्यतित करते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का यह पावन पर्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक सांस्कृतिक पारिवारिक भावनाओं को भी आपस में गहराई से जोड़ता है। जन्माष्टमी के पावन अवसर पर छोटे छोटे बच्चें बालकृष्ण कान्हा की वेशभूषा धारण कर झूला झेलते हैं । घर घर में इस दिन लड्डू गोपाल की पूजा वंदना करके जन्मोत्सव मनाया जाता है। ।। जय कन्हैया लाल की ।। जय चक्र सुदर्शनधारी की ।।